गौरक्षा के नाम पर सरकार को बदनाम करने की साजिश तो नहीं !
गौरक्षा के नाम पर पिछले दिनों देश के कई हिस्सों से जो खबरें आ रहीं हैं, वो निश्चित तौर पर सोचने के लिए विवश कर देती हैं कि हमारा समाज किस ओर जा रहा है.गौरक्षा के नाम पर उत्पात मचाना कितना जायज है? जुलाई के दुसरे सप्ताह में गुजरात के ऊना में इन कथित गौरक्षकों द्वारा मृत गायों की खाल उतारने वाले दलितों की पिटाई के बाद इस मामले ने नया रूप ले लिया.चूंकी जबसे केंद्र में मोदी सरकार आई है, ऐसे मामले चर्चा के विषय बन गये हैं. मोदी विरोधी यह कहने से नहीं चुक रहे थे कि गौरक्षा के नाम पर अशांति फैलाने वालों को केंद्र सरकार का संरक्षण प्राप्त है. ऐसे में सरकार को भी अपना रुख स्पष्ट करना जरूरी था.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी कमान संभाली तथा गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर कड़ा रुख अख्तियार किया.दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी शनिवार को टाउनहॉल में जनता से रूबरू होते हुए सवालों का जवाब दे रहे थे. गौरक्षा को लेकर अपरोक्ष रूप से पूछे गये सवाल में मोदी ने गौरक्षा के नाम पर अपना धंधा चलाने वालों को जमकर फटकार लगाई. प्रधानमंत्री ने साफ़ शब्दों में कहा है कि कुछ लोग गौरक्षा के नाम पर अपनी दुकान लेकर बैठ गए हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि यह वही लोग है जो रात में असमाजिक कार्य करते हैं और दिन में गौरक्षा का चोला पहन कर अपनी दुकान चलाते हैं. साथ ही, प्रधानमंत्री ने जोर देते हुए कहा कि अगर गौसेवा ही करनी है तो गाय को प्लास्टिक खाने से रोकिये. जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने इन तथाकथित गौसेवकों को फटकर लगाई, तब से वे सभी लोग शरमायें जा रहे हैं जो गौसेवकों को संघ से जोड़ कर देखते हैं.विरोध के लिए विरोध करने वाले इन सेक्युलर कबिले के लोग इनती कड़ी फटकार के बाद भी केंद्र सरकार पर सवाल उठाने से नहीं चुक रहें हैं. मसलन प्रधानमंत्री ने इतनी देरी से क्यों बोला? पूरी जानकारी स्पष्ट होने के बाद प्रधानमंत्री ने जो संदेश दिए हैं, वो काबिलेतारीफ है.गौर करें तो पिछले कुछ महीनों से देश में अचानक गौरक्षकों की बाढ़ सी आ गई है.जहाँ –तहां खासकर भाजपा शासित राज्यों में यह कथित गौरक्षक न केवल गौसेवा के नाम पर लोगों को मारने –पीटने का काम करते रहें हैं, बल्कि जबरन गौसेवा के लिए धमकाने का काम करते पाए गए हैं. गौसेवा के नाम पर लोगों को मारने –पीटने के साथ –साथ लोगों को अपने भय के बूते गौसेवा करने की धमकी दे रहें हैं.यह पूरा मामला समझ से परे है कि जब देश में गाय आस्था स्वरूप पशु है और देश के हिन्दू समाज ने गाय को माँ का दर्जा दिया है, ऐसे में गौसेवा के लिए हिंसा करना कहाँ तक जायज है? गौसेवा की आड़ में कुछ तथाकथित गौसेवकों को लेकर सेक्युलर जमात ने यह अफवाह फ़ैलाने में तनिक भी देरी नहीं लगाई कि गौरक्षा, केंद्र सरकार की सह पर हो रहा है और यही हिंदुत्व का असली चेहरा है. खैर,प्रधानमंत्री के बयान के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से इन कथित गौरक्षकों को कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है. प्रधानमंत्री ने सख्त लहजे में न केवल गौरक्षा के ठेकेदारों को कड़े संदेश दिए, बल्कि तमाचा उनके गाल पर भी पड़ा है जो निराधार आरोपों से सरकार को बदनाम कर रहे थे. जाहिर है कि सेक्युलरिजम के झंडाबरदारों ने सबसे ज्यादा चोट हिन्दू आस्था को पहुंचाई है. इसी कड़ी में गाय को लेकर तरह –तरह के जुमले गढ़ चुके कथित प्रगतिशीलों का हिन्दू आस्था को चोट पहुंचना प्रमुख शगल रहा है. यहाँ एक स्थिति यह भी है कि ये बहुत ही योजनाबद्ध ढंग से हिन्दू आस्था पर हमले करते हैं.पहले हमारे देवी देवताओं की अश्लील मूर्तियां बनाकर, तो कभी ग्रंथ पुराणों को अपमानित करके ये तथाकथित सेक्युलर प्रगतिशील हिन्दू आस्था पर कुठाराघात करते रहते हैं.ऐसे में वर्तमान प्रकरण के संबंध में भी इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारों समेत हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए ये गौरक्षा का वितंडा, कहीं ये सरकार को बदनाम करने की साजिश तो नहीं ? सवाल यह भी खड़ा होता है कि अचानक इतने गौसेवक कहाँ से आये? दूसरा सवाल यह कि इनका भरण –पोषण कौन कर रहा है? कथित गौसेवकों को यह समझ लेना चाहिए कि उनके गौसेवा के स्वांग से गौवंश की रक्षा नहीं होने वाली है.अगर वाकई इनकी नियति गौरक्षा की होती तो राजस्थान के जयपुर के समीप हिंगोनिया गौशाला में कर्मचारियों की हड़ताल के कारण जब 500 से अधिक गायें गोबर और कीचड़ में फंस कर मर रहीं थीं .तब यह कथित गौसेवक कुम्भकर्ण की नींद सोते रहे. इस घटना पर जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि जो भी गौरक्षा के नाम पर दूसरों को परेशान करें या किसी भी तरह से कानून का उल्लंधन करे, उसके विरूद्ध राज्य सरकारों को कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए. देश में कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जहाँ गौरक्षकों ने समाजिक सौहाद्र बिगाड़ने की पूरी कोशिश की. लेकिन,स्थानीय प्रशासन की चुस्ती से अपने मकसद में पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सके. दरअसल इस पुरे मामले पर गौर करें तो इसमें केंद्र सरकार की बदनामी की बू नजर आती है. इसके दो कारण हैं पहला ऊना की घटना में दलितों को टारगेट किया गया तो एक और घटना मध्य प्रदेश में हुई जहाँ एक मुस्लिम महिला मार –पीट का शिकार हुई. जाहिर है कि कथित बुद्धजीवियों द्वारा मोदी सरकार के बेजा विरोध के लिए पुरस्कार वापसी प्रकरण में हम इनकी नौटंकी देख चुके हैं.उसकी सच्चाई क्या थी यह बिहार चुनाव के बाद पता चल गया.अब एकबार फिर ये ऐसा माहौल बनाने में जुटे हुए हैं कि मोदी सरकार दलित व मुस्लिम विरोधी है. बहरहाल प्रधानमंत्री ने इन गौरक्षकों को खरी –खरी सुना दी है. अब राज्य सरकारों का दायित्व बनता है कि इनके सच को उजागर करें तथा गौरक्षा के नाम पर माहौल खराब करने वाले फर्ज़ी गौरक्षकों को बेनकाब करें.
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