सभी कयासों को विराम लागते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अमित शाह को दुबारा पार्टी अध्यक्ष चुना.बीते रविवार को अमित शाह दुबारा पार्टी अध्यक्ष के रूप में निर्विरोध चुने गये. राजनाथ सिंह का कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्हें पहली बार पूर्ण कालिक अध्यक्ष बनाया गया है.अमित शाह भारतीय राजनीति में ऐसा नाम है, जिसकी छवि एक कद्दावर नेता के तौर पर होती है.विगत लोकसभा चुनाव में इनकी रणनीति और चुनाव प्रबंधन का सबने लोहा माना था.जिसके परिणामस्वरूप राजनाथ सिंह को अध्यक्ष पद से मुक्त कर शाह को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था.लोकसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र ,हरियाणा समेत कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने विजय रथ को जारी रखा,गौरतलब है कि इन चुनावों में पार्टी अध्यक्ष से कहीं ज्यादा प्रधानमंत्री मोदी ने खुद चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी,नतीजा पार्टी इन राज्यों में अपनी सरकार बनाने में सफल रही,लेकिन एक बात पर गौर करें तो जैसे ही मोदी का लहर में कमी आई,पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा.पहले दिल्ली में पार्टी को करारी शिकस्त मिली.उसके कुछ महीनों बाद बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा.इसके साथ कई राज्यों ,में हुए नगर निकाय चुनाव के नतीजे भी पार्टी के लिए चिंता का विषय है.बहरहाल ,अमित शाह बीजेपी के शाह तो बन गयें लेकिन उनके सामने कई ऐसी चुनौतियाँ है जिससे पार पाना अमित शाह के लिए आसान नही होगा.शाह की पहली चुनौती अपनो को मनाने की होगी,अपनों का सीधा मतलब मार्गदर्शक मंडल से है.ये बात जगजाहिर है कि अमित शाह भले ही निर्विरोध अध्यक्ष चुने गयें हो पर, इस फैसले से मार्गदर्शक मंडल खुश नही है.इस बात का जिक्र करना इसलिए जरूरी हो जाता है.क्योकिं पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल बनाया तो है,लेकिन कभी भी उनके साथ पार्टी की कोई बैठक नही होती तथा न ही किसी मसले पर पार्टी के इन वरिष्ठ नेताओं का सुझाव माँगा जाता है.नतीजा मार्गदर्शक मंडल अपने आप को अलग –थलग पाता है.बीजेपी भले ये दावा करें कि शाह सबकी सहमती से अध्यक्ष चुने गयें है.लेकिन अमित शाह की ताजपोशी में आडवाणी,जोशी समेत मार्गदर्शक मंडल का कोई भी सदस्य मौजूद नही था.जो बीजेपी के इस दावे पर सवालियां निशान लगाता है.अमित शाह पार्टी के इन वरिष्ठ सदस्यों को मनाने में सफल हो जाते है तो, ये शाह की बड़ी जीत होगी.इस जीत के मायने को समझें तो दो बातें सामने आतीं है.पहली बात जबसे अमित शाह पार्टी की कमान संभालें है पार्टी पर मार्गदर्शक मंडल की अनदेखी करने का आरोप लगता आया है.अगर अमित शाह इनकों अपने पक्ष में कर लेते है तो, इस आरोप से बच जायेंगे.दूसरी बात पर गौर करें तो कुछ महीनों से बीजेपी में आंतरिक कलह की बात सामने आई है,जिसमे मार्गदर्शक मंडल के साथ पार्टी के कई बड़े नेता अमित शाह और मोदी के विरोध में खड़ें दिखे रहें है.जो किसी भी संगठन के लिए सुखद संकेत नही है.अमित शाह को इस चुनौती से जल्द से जल्द पार पाना होगा.अमित शाह की दूसरी सबसे बड़ी चुनौती आगामी कई राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनाव है,क्योकिं अब मोदी का वो जादू नही रहा जिसपर सवार होकर बीजेपी आसानी से जीत तक पहुँच जायेगी,अमित शाह को एक ऐसी चुनावी बिसात विछानी होगी.जिसपर चल कर पार्टी जीत तक पहुँच सके.अमित शाह का निर्वाचन ऐसे वक्त में हुआ है,जब कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है.मसलन पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी ये ऐसे राज्य है.जहाँ चुनाव कुछ ही महीनों में होने वालें है.इन राज्यों में होने वालें चुनाव अमित शाह के नेतृत्व के लिए पार्टी को जीत दिलाने की बड़ी चुनौती होगी.असम को छोड़ दे तो बाकी राज्यों में बीजेपी को सहयोगी दल की तलाश होगी.गठबंधन के लिए पार्टी का चयन करने मे अमित शाह परिपक्व नही है.जिसके कई उदाहरण हमारे सामने है ,महाराष्ट्र में बीजेपी ,शिवसेना के साथ ताल –मेल बैठाने में कारगर नही हुई है,शिवसेना और बीजेपी के रिश्तों में इतनी तल्खी कभी देखने को नही मिली लेकिन, अब आएं दिन महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना की तकरार हमारे सामने आती है,दूसरा उदाहरण जम्मू –कश्मीर में भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई लेकिन आज वो गठबंधन पार्टी के उम्मीदों पर खरा नही उतर पाई,सईद के मृत्यु के बाद से अभी तक वहां नई सरकार का गठन नही हुआ है ,जो बीजेपी –पीडीपी के संबंधो में खटास बताने के लिए काफी है.बहरहाल, अमित शाह के समाने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में अनुशासन कायम करने की है.पार्टी में कई ऐसे मंत्री और नेता है.जिनके बड़बोले बयानों ने पार्टी की खूब किरकरी कराई है,अमित शाह के निर्देश के बावजूद कई ऐसे मौके आएं जहाँ पार्टी बेकाबू होते हुए नजर आई,आज भी कई नेता पार्टी लाइन से हटकर बयानबाज़ी कर रहें है,इन सबको अनुशासन का पाठ पढ़ाना अमित शाह की जिम्मेदारी है,अब देखने वाली बात होगी कि अमित शाह कैसे ये जिम्मेदारी निभातें है. अमित शाह के लिए ये कार्यकाल चुनौतियों भरा रहेगा, अगर इन चुनौतियों पार पाने में शाह सफल हो गये तो इससे न सिर्फ पार्टी जीत के रास्ते पर वापस आएगी बल्कि शाह पार्टी के सबसे सफल अध्यक्ष के रूप में अपने आप को साबित कर सकेंगे.
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