दुष्प्रचार की डगमगाती नैया के बीच गतिशील संघ !

यह एक सामान्य सत्य है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को लेकर तमाम प्रकार की भ्रांतियां एवं दुष्प्रचार लंबे समय से देश में चलता रहा है.कांग्रेस एवं मीडिया से जुड़े बुद्दिजीवियों का एक धड़ा संघ को एक साम्प्रदायिक एवं राष्ट्र विरोधी संगठन जैसे अफवाहों को हवा देने की जिम्मेदारी अपने कंधो पर ले रखी है.किंतु वर्तमान समय में इनका   हर दावं विफ़ल साबित हो रहा है,जिससे तंग आकर इस कबीले के लोगों ने नया ढंग ईजाद किया है.वह है संघ से जुड़े पदाधिकारियों के बयान को अपनी सुविधा और अपने वैचारिक हितों की पूर्ति के मद्देनजर दिखाना.ताज़ा मामला संघ प्रमुख मोहन भागवत के बिहार के मुजफ्फरपुर में रविवार को दिए भाषण का है.संघ प्रमुख ने स्वयं सेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि “हमारा मिलिट्री संगठन नहीं है मिलिट्री जैसी डिसिप्लिन हमारी है और अगर देश को जरूरत पड़े और देश का संविधान,कानून कहे तो, सेना तैयार करने में छह –सात महीने लग जायेंगे,संघ के स्वयंसेवक को लेंगे तो तीन दिन में तैयार हो जाएगा.यह हमारी क्षमता है लेकिन, हम मिलिट्री संगठन नहीं है पैरामिलिट्री भी नहीं हैं हम तो पारिवारिक संगठन हैं” मोहन भागवत के इस संतुलित एवं साधारण सा बयान के आने बाद जैसे भूचाल सा मच गया .देश की छद्म सेकुलर विरादरी को संघ प्रमुख के इस बयान को इस ढंग से प्रस्तुत करने में लग गये कि भागवत ने सेना का अपमान किया है अथवा देश में सेना के बरक्स आरएसएस ने एक सेना तैयार कर लिया है,जो देश के लिए घातक है.मीडिया के बड़े हिस्से ने भी कौआ कान ले गया वाली पत्रकारिता करने में दिलचस्पी दिखाई और कान पर हाथ फिराने की बजाय कौवे के पीछे दौड़ पड़े .मानों जैसे उन्हें इस बयान को सुनने और समझने से पहले संघ और भागवत की आलोचना सबसे जरूरी हो.बात जब ज्यादा बढ़ी तो उक्त बयान के मद्देनजर संघ को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि संघ प्रमुख की बात को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया.यह सेना के साथ तुलना नहीं थी पर सामान्य समाज और स्वयंसेवकों के बीच में थी. संघ प्रमुख के इस पूरे बयान को समझने का प्रयास करें तो इसमें कहीं भी कोई विवाद की स्थिति नज़र नही आती.हर संगठन का प्रमुख अपने संगठन में उत्साह और ऊर्जा के लिए सकारात्मक तुलनात्मक दृष्टिकोण को अपनाता है.मोहन भागवत ने गलत क्या कहा है ? देश में सैनिक तैयार करने के लिए एक स्थापित व्यवस्था है.जो छह माह से ज्यादा समय ट्रेनिंग का होता है उसके पश्चात् कोई आम आदमी  सैनिक बन पाता है.खैर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक सांस्कृतिक और अनुशासित संगठन के तौर पर एक स्थापित संगठन है.जिसकी व्याख्या मोहन भागवत ने अपने भाषण में किया है.आरएसएस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर तीस सेकेंड के उस वीडियो का लिंक भी सामने आया है.जिसमें मोहन भागवत का यह पूरा निर्विवादित बयान उपलब्ध है.जैसे ही वह वीडियो सामने आया जिसमें संघ प्रमुख की पूरी बात साफ़ एवं स्पष्ट ढंग से सुनाई पड़ रही.अफवाही गिरोह द्वारा बेतुकी दलीलों के साथ व्यर्थ में खड़ा किया गया वितिंडा पूरी तरह से ध्वस्त हो गया.ऐसा पहली बार नहीं है कि संघ से जुड़े किसी पदाधिकारी के बयान को तोड़ –मरोड़ के पेश किया गया हो.इस दुर्भावना की एक लंबी श्रृंखला है.बहरहाल, यह एतिहासिक तथ्य है कि देश व समाज को जब –जब आरएसएस की जरूरत जिस मोर्चे पर पड़ी है.संघ निस्वार्थ भाव से उस मोर्चे पर खड़ा मिला है.चाहें वह सीमा सुरक्षा की बात हो,प्राक्रतिक आपदा से निपटने की बात हो अथवा आंतरिक सुरक्षा की.संघ हर उस संकट से बाहर निकालने में समाज की मदद करने के लिए स्वयं आगे आया है.भागवत के इस बयान को लेकर राजनीतिक तापमान भी बढ़ गया कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस बयान को शर्मनाक बताते हुए सेना और शहीदों का अपमान करार देते हुए संघ प्रमुख से माफ़ी की मांग की.हालाँकि राहुल गाँधी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि ‘खून की दलाली’ जैसा बयान हो अथवा हमारी देश की सेना सीमा पार जाकर दुश्मनों के बंकरों को तबाह करने का साहस जान हथेली पर रखकर दिखाती है और कांग्रेस नेता सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना के शौर्य एवं पराक्रम पर संशय दिखाते हैं तथा इसके प्रमाण सेना से मांगते हैं .क्या कांग्रेस नेता का यह बयान सेना का अपमान नहीं था ? इसके लिए कांग्रेस ने अभीतक माफ़ी क्यों नहीं मांगी ? गौरतलब है कि कई एतिहासिक साक्ष्य मौजूद है जो इस बात की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त हैं कि जब –जब देश और सेना पर संकट आया है.आरएसएस पूरी लगन एवं निष्ठा के साथ सेना की सहायता की है.मसलन सन 1947 के ओक्टुबर महीने के अंत में जम्मू –कश्मीर पर पाकिस्तान के द्वारा हुए अचानक हमले के समय राष्ट्रीय स्वयं संघ के स्वयंसेवकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए श्रीनगर हवाईअड्डे पर हिमपात से हवाई अड्डा बाधित था किन्तु महज 48 घन्टे के अंदर जमी हुई बर्फ़ की सिल्लियों को साफ़ कर दिया था.जिसके परिणाम स्वरूप वहाँ भारतीय सैनिकों का विमान दिल्ली से श्रीनगर हवाईअड्डे पर उतर सका. इसीतरह संघ ने कई गौरवशाली काम किये हैं.जिसमें वह सेना की रक्षा व सेना का सहयोग की बात सामने आती है.संघ के पराक्रम और सेवा भाव का ही परिणाम था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के धुर विरोधी कहे जाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर नेहरु भी संघ की राष्ट्र सेवा का सम्मान करने से खुद को रोक नहीं सके.1962  के युद्ध में जिसतरह से संघ के स्वयंसेवकों ने देश भर की जनता को एकजुट कर उनका मनोबल बढ़ाते हुए सेना के लिए जन समर्थन जुटाया वह, यह प्रदर्शित करने के लिए काफ़ी है कि संकटकाल के समय संघ बिना की वैचारिक भेदभाव के राष्ट्र को प्रथम मानते हुए संकट से लड़ने में पहली कतार में खड़ा मिलता है.संघ के इस सेवाभाव से नेहरु इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 26 जनवरी 1963 की गणतंत्र दिवस के परेड में संघ को ससम्मान आमंत्रित किया.उससे भी ज्यादा हैरान कर देने वाली बात यह है कि आरएसएस को इसकी सूचना महज तीन दिन पहले प्राप्त हुई थी लेकिन, अनुशासित संगठन के लिए यह तीन दिन ही बहुत थे.लिहाज़ा तीन हजार पूर्ण गणवेशधारी स्वयं सेवकों ने पूरी तैयारी के पथ संचलन किया.इसीतरह 1965 के युद्ध में भी संघ अपनी भूमिका से पीछे नहीं हटा.उस समय के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर पाकिस्तान से चल रहे इस युद्ध में संघ लगातार सेना को भोजन एवं अन्य जरूरी बस्तुओं को अपनी जान की परवाह किये बगैर सैनिकों तक पहुँचता रहा.संघ सैनिकों के प्रति कितना सम्मान भाव रखता है इसका अंजादा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 1965 के ही युद्ध में आधी रात को आरएसएस के दिल्ली कार्यालय में युद्ध के दौरान घायल सैनिकों के लिए खून की कमी की जानकारी प्राप्त होती है और सुबह –सुबह पांच सौ की संख्या में स्वयं सेवक रक्तदान करने के लिए सैनिक अस्पताल पहुँच गए थे.इन सभी ऐतिहासिक तथ्यों एवं प्रमाणों के आलोक में यह कहना किसी भद्दे मज़ाक की तरह है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सैनिकों एवं शहीदों का कभी भी अपमान किया है.कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को इस तरह के जवाबी हमले से पहले यह समझ लेना चाहिए कि उनकी टिप्पणी के मायने क्या होंगे ? यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि संघ सेना का सम्मान न केवल बातों तक सिमित रखता है बल्कि उसको सदैव चरितार्थ भी किया है.आज संघ निरंतर अपने सेवा,राष्ट्र प्रेम की भवना को लेकर आगे बढ़ रहा है.पंरतु सवाल आज भी कायम है कि क्या किसी गैर राजनीतिक संगठन को लेकर इसप्रकार का दुष्प्रचार वाज़िब है ? क्या संघ की सेवा कार्यों का मूल्यांकन ईमानदारी से नहीं होना चाहिए ? 

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