जब भी सरकार रेल बजट पेश करती है, तो रेलवे के कायाकल्प बदलने तथा हर प्रकार की बुनियादी सुविधाओं में सुधार के नाम पर लंबे –चौड़े वादे करती है,लेकिन हर बार की तरह सारे वादें कागजों तक सिमट कर रह जाते हैं.जमीनी स्तर पर रेलवे का कितना विकास होता है,ये बात जगजाहिर है,रेल मंत्री सुरेश प्रभु इसी सप्ताह वित्तीय वर्ष 2016-17 का रेल बजट प्रस्तुत करेंगे,बजट के द्वारा सरकार रेलवे की सुविधाओं को लेकर तमाम प्रकार की योजनाएं लाती है,परन्तु उसका ठीक ढंग से क्रियान्वयन करने की नीति सरकार के पास नही होती,जिसके कारण निर्धारित समयावधि में रेलवे की कोई योजनाएं पूरी नहीं होती.हर बार बजट के माध्यम से रेल मंत्री जनता को आश्वस्त करते हैं कि ये बजट रेलवे को नई उचाईयों पर ले जायेगा,परन्तु स्थिति इसके विपरीत है,आज रेलवे कई समस्याओं से जूझ रहा है,मसलन रेलवे टिकट में बढ़ते भ्रष्टाचार,ट्रेन में मिलने वाले निम्न दर्जे के खाद्य पदार्थ,इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी समस्या यात्री सुरक्षा की है.आएं दिन रेलवे में कई बड़ी दुर्घटनाएं होती हैं.जिसमें हजारों के जान –माल के नुकसान की खबरें मिलती हैं ,मगर रेलवे सुरक्षा के मसले पर कोई बड़ा कदम नहीं उठाती, रेलवे की मुख्य प्राथमिकता यात्रियों को सुरक्षा देना है लेकिन इस मोर्चे पर रेलवे प्रशासन विफल रहा है.हर हादसा रेलवे के सुरक्षा प्रणाली पर सवालिया निशान लगाता है.अमूमन भारतीय रेल में हर दिन कहीं न कहीं छोटी –मोटी दुर्घटना होती रहती है.मगर ऐसे गंभीर विषय पर न तो रेलवे प्रशासन गंभीर है और न ही रेलवे मंत्रालय.नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक 2014 में रेल हादसों के 28,360 मामले दर्ज हुए.इनमें 2013 के मुकाबले 9.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.2013 में 31,236 हादसे दर्ज किये गये थे.इसमें ज्यादातर मामलें लगभग 61.6 फिसदी लोगों के ट्रेन से गिरने या रेलवे ट्रैक पर ट्रेन की चपेट में आने के रहे.लेकिन फिर स्थिति विगत वर्ष 2015 में गम्भीर होती दिखी.रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने पिछला बजट पेश करते समय बारह बार सुरक्षा शब्द का इस्तेमाल किया था.लेकिन यात्रियों को कितनी सुरक्षा मिल रही ये बात अब किसी से छिपी नहीं है.भारत में रेल दुर्घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है.जो रेलवे प्रशासन व शासन की नाकामी को दर्शाता है.अमूमन रेल दुर्घटनाओं के पीछे सिग्नल में खराबी,जर्जर पटरियों,कोहरा व मानवीय गलती प्रमुख होती है,हर बजट में सरकारें तमाम प्रकार की योजनाओं की घोषणा करती हैं.जिसमे रेल यात्रियों की सुख,सुविधा और सुरक्षा को तरजीह दी जाती है. कई परियोजनाओं का शुभारंभ होता है लेकिन योजना को पूरा होने में तय अवधि से अधिक वर्ष लग जाते हैं.जो हमारी रेलवे की विफलता का प्रमुख कारण है.समय से पटरियों की मरम्मत नहीं होती,जिससे पटरिया घिस जाती है और दुर्घटना को दावत देती है.रेल दुर्घटना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आयी है.इसका समाधान भी इस दिशा में सही योजना का निर्माण कर उसे सही क्रियान्वयन के द्वारा ही किया जा सकता है.पिछले साठ सालों में रेलवे के सुधार के लिए तमाम समितियों का गठन किया गया.देश की सभी सरकारों ने उन समितियों की रिपोर्ट को नजरअंदाज किया.वर्ष 1962 में कांग्रेस ने कुंजरू समिति बनाई पर उसकी रिपोर्ट पर अमल नहीं किया फिर 1968 में बांचू समिति गठित की गई उसकी रिपोर्ट को भी नकार दिया गया फिर 1978 में सिकरी समिति इस प्रकार लगभग कई समितियों का गठन तो किया गया लेकिन उसके रिपोर्ट को कूड़ेदान में फेक दिया गया. वर्ष 2012- 2013 में तात्कालिक रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने एक बजट पेश किया जिसमे रेल आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया.इस दूरदर्शी बजट में 5.60 लाख करोड़ रूपये आधुनिकीकरण आदि के नाम पर खर्च का प्रस्ताव दिया गया था.काकोदकर समिति ने अपने रिपोर्ट में कहा था कि आगामी पांच वर्षो में सुरक्षा उपकरणों व सुरक्षा उपायों के लिए एक लाख करोड़ रूपये की आवश्यकता है.वहीँ दूसरी तरफ पित्रोदा समिति ने रेल के आधुनिकीकरण और रेल को भविष्य की रेल बनाने के लिए 8 लाख 39 हजार करोड़ रूपये की आवश्यकता की बात की थी.इस बजट में इन दोनों समितियों की सिफारिशों को लागू करने की योजना बनाई गई थी.सुरक्षा पर गंभीर चिंता व्यक्त करने वाली काकोदकर और पित्रोदा समिति को भी सियासत की भेंट चढना पड़ा.रेलवे में सियासी हस्तक्षेप का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि तत्कालीन रेल मंत्री को भी अपना पद गवाना पड़ा.भारत की लगभग सभी सरकारें रेलवे सुरक्षा जैसे गंभीर विषय को तवज्जो देने,यात्रियों की जान –माल की रक्षा करने के बजाय अपनी सियासत साधने में लगी रहती है.भारतीय रेल दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है.जो प्रतिदिन 19 हजार ट्रेनों का संचालन करता है.जिसमे 12 हजार ट्रेनें यात्री सेवा के लिए तथा 7 हजार ट्रेने माल ढोने का काम करती हैं.भारतीय रेल हर दिन 2.3 करोड़ यात्रियों को उसके गंतव्य तक पहुँचाने का काम करती है.लेकिन यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के इतने वर्षों के बाद भी रेलवे यात्रियों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकी.रेल मंत्री सुरेश प्रभु को चाहिए कि आने वाले बजट में यात्रियों की सुरक्षा के लिए कुछ बड़े कदम उठायें जिससे यात्री सफर करते वक्त अपने आप को सुरक्षित महसूस करें.
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