लोकतांत्रिक स्तंभों में टकराव
सुप्रीम कोर्ट नेशुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय न्यायिक न्युक्ति आयोग को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया है तथा इससे संबंधित अधिनियम को भी रदद् कर दिया.केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की न्युक्ति और तबादले के लिए राष्ट्रीय न्यायिक न्युक्ति आयोग एक्ट का गठन किया था.जिसके अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज,केंद्रीय कानून मंत्री तथा दो हस्तियों को शामिल किया गया था,लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इसे संविधान की अवधारणा के खिलाफ बताते हुए खारिज़ कर दिया है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस संशोधन से संविधान के मूल ढांचे का उलंघन होता,इसके साथ ही उच्चतम न्यायलय ने एनजेएसी को लाने के लिए 99वें संशोधन को भी निरस्त कर दिया है.सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट किया है कि, जजों की न्युक्ति पुराने काँलेजियम प्रणाली के तहत ही होगी.हलाँकि कोर्ट के इस फैसले से सरकार को करारा झटका लगा है,टेलिकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस फैसले को संसदीय संप्रभुता के लिए झटका करार दिया है.गौरतलब है कि संविधान समीक्षा आयोग,प्रशासनिक सुधार आयोग और संसदीय स्थाई समितियों ने अपनी तीन रिपोर्ट्स में ऐसे कानून की सिफारिश की थी.जिसको सरकार संज्ञान में लेते हुए एनजेएसी को ससंद के दोनों सदनों से पारित करवाया था.सरकार को ये विश्वास था कि न्युक्ति आयोग के आने से न्यायधीशों की न्युक्तियों में कॉलेजियम प्रणाली की अपेक्षा ज्यादा पारदर्शिता रहेगी लेकिन कोर्ट ने इसे दरकिनार कर दिया है.अब सवाल ये उठता है कि एनजेएसी पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर क्यों नहीं लगाई ? अगर सवाल की तह में जाएं तो कई बातें सामने आती हैं,प्रथम दृष्टया एनजेएसी में बतौर सदस्य केंदीय कानून मंत्री को शामिल किया गया है.जिससे कोर्ट को डर था कि इसके चलते न्यायपालिका पर सरकार का सीधा हस्तक्षेप हो जायेगा और सरकारें अपने राजनीतिक फायदे के लिए इसका इस्तेमाल कर सकती है.जो भारतीय न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है,इस कारण न्यायपालिका का वजूद भी खतरे में पड़ सकता था.जाहिर है कि कोर्ट के पास सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मुकदमें है, मसलन कोल ब्लॉक में हुई धांधली,2जी समेत ऐसे कई बड़े मामले अभी तक कोर्ट में चल रहें है.जिसका निस्तारण कोर्ट को ही करना है,इस अवस्था में कार्यपालिका का न्यायपालिका में दखल तर्कसंगत नहीं होता.कहीं न कहीं इन मामलों पर सरकार का हस्तक्षेप जरुर देखने को मिलता साथ ही आयोग की निष्पक्षता भी खतरे में रहती.दूसरा ये कि इस आयोग में दो हस्तियों को सरकार ने शामिल करने की बात की है परन्तु ,उनकी योग्यता को लेकर कोई पैमाना सरकार ने नही बताया है और ना ही वो व्यक्ति किस क्षेत्र से रहेंगे इस मसलें पर भी सरकार का रवैया संदिग्ध नजर आता है.ये दो मुख्य कारण है,जिसको ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये एतिहासिक फैसला सुनाया.ऐसा नही है कि काँलेजियम प्रणाली में खामियां नहीं है,कोर्ट ने खुद स्वीकार किया है कि तीन नवंबर को कॉलेजियम प्रणाली में सुधार में मुद्दे पर सुनवाई करेगा.1993 में जब इस प्रणाली को लागू किया गया था तो, इसका उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायधीशों की न्युक्तियों पर कार्यपालिका के बढ़ते दखल को रोकना था तथा न्यायपालिका की स्वत्रंता को बरकार रखना था,सुप्रीम कोर्ट शुरू से ही इस बात का हिमायती रहा है कि जजों की न्युक्ति न्यायपालिका का आंतरिक मामला है.इसमें सरकार की कोई भूमिका नही रहनी चाहिएं.इसमें उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार अन्य वरिष्ठ न्यायधीश, जजों की न्युक्ति व स्थानांतरण की सिफारिश करतें है लेकिन इस प्रणाली में पारदर्शिता का आभाव देखने को मिलता रहा है.बंद कमरों में जजों की न्युक्ति की जाती रही है.व्यक्तिगत और प्रोफेसनल प्रोफाइल जांचने की कोई नियामक आज तक तय नहीं हो पाया है.जिसके चलतें इसके पारदर्शिता को लेकर हमेसा से सवाल उठतें रहें है.कुछ लोगो ने तो कॉलेजियम प्रणाली पर आपत्ति जताते हुए भाई –भतीजावाद एवं अपने चहेतों को न्युक्ति देने का आरोप भी लगाया.जो हमें आएं दिन खबरों के माध्यम से देखने को मिलता है.बहरहाल,कॉलेजियम बनाम एनजेएसी के विवाद में सबसे ज्यादा दिक्कत आम जनमानस को हो रही है.देश की अदालतों में लगभग 3,07,05,153 केस आज भी लंबित पड़े है.देश के कोर्ट कचहरियों में फाइलों की संख्या बढ़ती जा रही है,लंबित मुकदमों की फेहरिस्त हर रोज़ बढ़ती जा रही है.आदालतों में भ्रष्टाचार के मामलें आए दिन सामने आ रहें है .फिर भी हमारे लिए गौरव की बात है कि आज भी आमजन का विश्वास न्यायपालिका पर बना हुआ है.अगर उसे शासन से न्याय की उम्मीद नही बचती तब वो न्यायपालिका ने शरण में जाता है.ताकि उसे उसका हक अथवा न्याय मिल सकें.लेकिन न्यायपालिका की सुस्त कार्यशैली एवं इसमें बढ़ते भ्रष्टाचार आदालतों की छवि को धूमिल कर रहें.जिसे बचाने की चुनौती कोर्ट के सामने है.ग्रामीण क्षेत्रों में आलम ये है कि लोग कोर्ट -कचहरी के नाम पर ही सर पकड़ लेते है, इसका मतलब ये नही कि उनको कोर्ट या न्यायपालिका से भरोसा उठ गया है,वरन जिस प्रकार से वहां की कार्यवाही और न्यायालय की जो सुस्त प्रणाली है,इससे भी लोगो को काफी दिक्कतों का सामना करता पड़ता है.जो अपने आप में न्यायालय की कार्यशैली पर सवालियां निशान लगाता है.सवाल ये कि क्या महज़ जजों की न्युक्ति का रास्ता साफ होने से ये समस्याएं समाप्त हो जाएँगी ?न्याय की अवधारणा है कि जनता को न्याय सुलभ और त्वरित मिलें.परन्तुं आज आमजन को इंसाफ पाने में एड़ियाँ घिस जा रही,पीढियां खप जा रही है.माननीय कोर्ट को इस पर भी विचार करने की आवश्यता है.जिससे लोगो को न्यायपालिका में प्रति सम्मान बना रहें. इस फैसले के आने के बाद अब लगभग 400 जजों की न्युक्ति का रास्ता साफ हो गया है.अब देखने वाली बात होगी कि आगामी तीन नवंबर को सुप्रीम कोर्ट इस प्रणाली में इन सब सुधारों के साथ त्वरित न्याय दिलाने के लिए क्या कदम उठाता है.कोर्ट के इस फैसलें के आतें ही न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव होने की स्तिथि नजर आ रही है.खबर आ रही है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसलें पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच जा सकती है तथा एनजेएसी के गठन संबंधी कानून में संशोधन के लिए विधेयक लाने पर भी विचार कर रही है .लेकिन सरकार को उन बातों पर भी गौर करना चाहिए,जिसके कारण कोर्ट ने इस विधेयक को निरस्त किया है.सरकार का तर्क है कि कॉलेजियम प्रणाली में खामियां है,परन्तु सरकार को ये भी जानना चाहिएं कि माननीय कोर्ट ने उन कमियों को दूर करने की बात की है.फिर भी अगर आगे न्यायपालिका और सरकार का गतिरोध बढ़ता है तो, ये भारत के लोकतंत्र के लिए अच्छा नही होगा
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