अमित शाह भाजपा के लिए जरूरी क्यों हैं ?
भारतीय जनता पार्टी की दो दिनों तक चली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कई ऐसी बातें सामने निकल कर आईं जो आगामी लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जा रहीं हैं.गौरतलब है कि यह बैठक 18 और 19 अगस्त को प्रस्तावित थी, किन्तु अटल जी के निधन के पश्चात् इसे टाल दिया गया था. दिल्ली के अम्बेडकर इन्टरनेशनल सेंटर में आठ तथा नौ सितम्बर को भाजपा की इस कार्यकारिणी को 2019 के लोकसभा चुनाव की जरूरी बैठकों में से प्रमुख माना जा रहा हैं. क्योंकि इस बैठक में बीजेपी ने आगामी चुनाव की रणनीति, नेतृत्व और प्रमुख मुद्दों का ब्लूप्रिंट प्रस्तुत किया है. इस बैठक में भाजपा ने वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों और लोकसभा तथा तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को केंद्र में रखकर जमकर मंथन किया. इस मंथन का निचोड़ क्या निकला तथा आने वाले समय में इसका क्या असर होगा यह समझना जरूरी है. जाहिर है कि इस बैठक में भाजपा ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में ‘नए भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने की बात 2022 तक की गई है. इस प्रस्ताव को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पेश किया. इस राजनीतिक प्रस्ताव में 2022 तक भारत को भ्रष्टाचार मुक्त, गरीबी मुक्त, भूखमरी तथा सम्प्रदायवाद से मुक्त भारत का विजन रखा गया है. जाहिर है कि नए भारत की संकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था, जिसको साकार करने की दिशा में सरकार, संगठन को साथ लेकर आगे बढ़ रही है. अपने बैठक में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़ी जीत का भरोसा देते हुए 2014 के चुनाव से ज्यादा जनसमर्थन हासिल करने का लक्ष्य रखा तथा संगठन को आगामी चुनावों के लिए कमर कसने की सलाह दी. इसके साथ ही विपक्ष द्वारा बन रहे महागठबंधन को भी आड़े हाथो लेते हुए झूठ पर आधारित गठबंधन बताया. कांग्रेस पर हमला करते हुए भाजपा प्रमुख ने कहा कि जहाँ भाजपा ‘मेकिंग इंडिया’ का काम कर रही है तो, कांग्रेस ‘ब्रेकिंग इण्डिया’ में लगी हुई है. बहरहाल, एक और सबसे प्रमुख बात अमित शाह ने कही जो आने वाले चुनाव के लिए बीजेपी के आत्मविश्वास को दर्शाता है. शाह ने कहा कि आगामी पचास साल तक हमें कोई नहीं हरा सकता. इस बयान के क्या मायने निकाले जाएँ ? क्या बीजेपी अमित शाह और नरेंद्र मोदी की अगुआई में वह जमीन तैयार करने में लगी है, जिससे बीजेपी लंबे समय तक सत्ता में काबिज़ रहे ? इस कार्यकारिणी में भाजपा ने यह तय कर दिया कि पार्टी अमित शाह और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही है. इन सब के बीच इस कार्यकारिणी में बीजेपी ने अपना सांगठनिक चुनाव को टाल दिया है और अमित शाह की अगुआई में ही आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है. सवाल यह उठता है कि अमित शाह भाजपा के लिए जरूरी क्यों है ? दरअसल, अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने भाजपा को एक नए मुक़ाम पर पहुंचाया है. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की संगठन संचालन की कुशलता का जो मेल है. वह भाजपा की चुनौतियों को अवसर में बदलने का काम कर रही है. यही कारण है कि विगत चार साल व चार माह में संगठन और सरकार बीच में कोई विरोधाभास नज़र नहीं आया है. अमित शाह भाजपा के लिए कितने अहम और कारगर हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है. संगठन और विचारधारा के विस्तार में शाह ने जिस योजना के साथ अपने अध्यक्षता के दौरान कार्य किया है वह अभूतपूर्व है. यही कारण है की उनकी गिनती बीजेपी के सबसे सफलतम अध्यक्षों में होती है.इसमें कोई दोराय नहीं कि जिस राजनीतिक चतुराई के साथ शाह काम करते हैं, उससे उनके सियासी विरोधी प्रायः चित्त नजर आते हैं. अगर यह कहा जाए कि नरेंद्र मोदी और शाह आज की राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी. संगठन को आगे बढ़ाने में अमित शाह और सरकार के नेतृत्व में नरेंद्र मोदी इतने परिपक्व ढंग से राजनीति कर रहे हैं कि विरोधी दलों के पास इस जोड़ी की कोई काट नजर नहीं आ रही है. उसी का परिणाम है कि भिन्न –भिन्न विचारधारा की पार्टियाँ अपने सिद्धांतों को ताक पर रखकर इनके खिलाफ लामबंद होती हुई दिखाई दे रहीं है. इसे बीजेपी सहर्ष अपनी सफलता बता रही है. इस जोड़ी की अगर सफलता की बात जब की जा रही है तो, इसके तथ्यों को भी समझना जरूरी है. 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें और अमित शाह के हाथों संगठन की कामन सौंपी गई. तब बीजेपी की स्थिति और वर्तमान समय में बीजेपी स्थिति को समझें तब स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. उस वक्त बीजेपी केवल सात राज्यों तक सिमटी हुई थी. संगठन का विस्तार भी एक क्षेत्र विशेष में सिमित था यही कारण था कि बीजेपी विरोधी इन्हें हिंदी बेल्ट की पार्टी बोलकर चिढ़ाते थे लेकिन, इस जोड़ी ने इस मिथक को तोड़ा और उन राज्यों में जहाँ भाजपा का जनाधार नहीं था, वहाँ न केवल संगठन का विस्तार किया बल्कि कम समय में ही अपनी स्थिति को इतना मजबूत कर लिया कि वहाँ बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही. पूर्वोत्तर के राज्य मसलन मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और असम में भाजपा को मिली जीत अमित शाह और मोदी के कुशल रणनीति की सफ़लता के सबसे उपयुक्त उदाहरण है. आज भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ 19 राज्यों में सरकार चला रही है. देश के तीन चौथाई भूभाग पर भाजपा का परचम लहरा रहा है. संगठन के स्तर पर बात करें तो जिस भाजपा के पास केवल तीन करोड़ सदस्य होते थे, आज भाजपा सदस्यों की संख्या ग्यारह करोड़ के पार जा चुकी है. फिर भी अमित शाह इससे संतुष्ट नजर नहीं आते हैं. जाहिर है उनकी नजर अब दक्षिण भारत के उन राज्यों पर है, जहाँ बीजेपी सत्ता से दूर है. लोकसभा चुनाव में सफल मैनेजमेंट और संगठन में एकजुटता जरूरी है और शाह इन दोनों कार्यों में निपुण हैं. इसी के मद्देनजर शाह के कार्यकाल को बढ़ाया गया है. बीजेपी कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री ने भी स्पष्ट कर दिया कि लोकसभा चुनाव में विपक्ष की तरफ़ से कोई चुनौती नहीं है. अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर जमकर वार किया और कांग्रेस पर झूठ की राजनीति करने का आरोप लगाया.इस समापन भाषण में नरेंद्र मोदी ‘अजेय भारत ,अटल भाजपा’ का नारा भी दिया. कुल मिलाकर भाजपा की इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी का जो निचोड़ निकलकर आया है, वो ये है कि भाजपा अमित शाह का मैनेजमेंट और मोदी की लोकप्रियता को भुनाने का कोई अवसर छोड़ने वाली नहीं है तथा आगामी चुनाव में भाजपा, सरकार के विकास कार्यों, विपक्ष की नकारात्मक राजनीति तथा प्रत्येक बूथ को जीतने के लक्ष्य के साथ चुनावी समर में उतरेगी.
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