आतंकवाद के विरुद्ध भारत का ‘न्यू नॉर्मल’

मोदी युग: आतंकवाद पर न्याय की अखंड प्रतिज्ञा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया देश के नाम दिया गया संबोधन न केवल देश के जनमानस की भावनाओं की उग्रता का प्रतीक था, बल्कि यह एक राष्ट्र की स्पष्ट, निर्भीक और निर्णायक विदेश नीति की उद्घोषणा भी थी। “ऑपरेशन सिंदूर” का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि, “हर आतंकी जान चुका है कि बहनों के माथे से सिंदूर मिटाने का अंजाम क्या होता है।” यह कथन केवल भावनात्मक उद्घोष नहीं था, बल्कि भारत की सैन्य नीति में आए निर्णायक परिवर्तन का प्रमाण भी है। यह संदेश पाकिस्तान को ही नहीं, बल्कि वैश्विक समुदाय को भी है कि, भारत अब केवल सहनशील राष्ट्र नहीं, बल्कि निर्णायक और प्रतिक्रियाशील शक्ति है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक और अब 2025 में ऑपरेशन सिंदूर — ये तीनों घटनाएं भारत की सैन्य रणनीति के तीन चरणों का प्रतिनिधित्व करती हैं। पहला चरण “दर्द का जवाब”, दूसरा “सीमा के पार आतंक का संहार” और तीसरा “दमनात्मक स्थायित्व”। यह परिवर्तन केवल सैन्य योजना में नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, खुफिया समन्वय और कूटनीतिक संरचना में भी परिलक्षित होता है।

मोदी सरकार के समय भारत की विदेश नीति ‘फोटो-ऑप’ आधारित कूटनीति से आगे बढ़ चुकी है। अब भारत ‘फोकस्ड स्ट्रैटेजी’ के साथ अपने पड़ोसियों, वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) और रणनीतिक साझेदारों के साथ नए सिरे से संबंध बना रहा है। ‘नेबरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ जैसी योजनाओं को ठोस नीतिगत आधार और आर्थिक साझेदारी के साथ जोड़ा गया है। मोदी की ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की सोच सिर्फ आदर्श नहीं, अब सामरिक विमर्श का हिस्सा है। प्रधानमंत्री का वक्तव्य कि “ये युग युद्ध का नहीं, लेकिन आतंकवाद का भी नहीं है” वास्तव में भारत की ‘डिटरेंस’ से ‘डॉमिनेंस’ की ओर बढ़ती रणनीति का सार है। अब भारत सिर्फ हमलों के जवाब में हमला नहीं करता, बल्कि यह तय करता है कि आतंक की जड़ पर उसे कब प्रहार करना है। यह ‘न्यू नॉर्मल’ सिर्फ पाकिस्तान नहीं, बल्कि उन सभी ताकतों के लिए चेतावनी है जो आतंक को कूटनीतिक औजार मानती हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने साफ किया कि पाकिस्तान के साथ अब कोई बात नहीं हो सकती, जब तक कि बात पीओके और आतंकवाद पर न हो। “टेरर और टॉक, टेरर और ट्रेड, पानी और खून — ये सब साथ नहीं बह सकते।” यह बयान केवल एक रेखा नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति का मौलिक सिद्धांत है। पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश दिया गया है कि भारत अब ‘शांति की प्रतीक्षा’ नहीं, ‘न्याय की प्रतिज्ञा’ वाला राष्ट्र है। “ऑपरेशन सिंदूर” सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि यह उस राष्ट्रीय संकल्प का नाम है, जो सांस्कृतिक प्रतीक से आगे जाकर भारत की रणनीतिक चेतना का ऐलान बन गई है। बीते दिनों भारतीय सेना द्वारा उठाया गया एक-एक क़दम हमारी चेतना और राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा हुआ था। जिसने वैश्विक परिदृश्य पर यह ऐलान किया है कि अब नया भारत अपने आत्म-सम्मान और अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करने वाला है। “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट किया कि भारत अब सिर्फ़ कड़ी चेतावनी नहीं देता, अपितु अपनी कूटनीति और रणनीतिक सोच की उद्घोषणा के साथ आगे बढ़ने वाला सशक्त देश बन चुका है। जहां का प्रत्येक नर-नारी अपने देश-समाज की रक्षा के लिए एक सुर में जवाब देने को तत्पर है। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य परंपरा में एक नई परंपरा की शुरुआत की है। यह वह क्षण है जब सामरिक कार्रवाई और सांस्कृतिक चेतना एक साथ एक लक्ष्य की ओर अग्रसर हुए। यह केवल शत्रु के अड्डों को नष्ट करना नहीं था, यह उनके आकाओं को सीधा संदेश था कि आतंक का पोषण अब भारत बर्दाश्त नहीं करेगा और ना ही न्यूक्लियर ब्लैकमेल की आड़ में पनप रहे आतंकवाद को, भारत अब सतत इसपर कड़ा प्रहार करता रहेगा। जब प्रधानमंत्री ने कहा, “आतंकियों ने हमारी बहनों का सिंदूर उजाड़ा था, इसलिए भारत ने आतंक के ये हेडक्वार्टर्स उजाड़ दिए,” तो यह बयान दुनिया के लिए एक साफ़ संदेश था: भारत अब प्रतीक्षा नहीं करेगा, प्रतिक्रिया देगा, और वह भी निर्णायक ढंग से।

भारत की बदलती सामरिक रणनीति: ‘न्यू नॉर्मल’ की स्थापना

‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की आतंकवाद नीति में डॉक्ट्रिनल शिफ्ट है — यह सिर्फ प्रतिशोध नहीं, बल्कि आतंकवाद के इको-सिस्टम को जड़ से खत्म करने का संकल्प है। मोदी सरकार की रणनीति अब तीन स्तंभों पर खड़ी है: न्यायिक वैधता, सैन्य स्पष्टता और कूटनीतिक निर्भीकता। इस ट्रायड के माध्यम से भारत न केवल सीमा पर बल्कि वैश्विक मंचों पर आतंकवाद को अलग-थलग करने में सफल रहा है। संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स, क्वाड, और जी-20 जैसे मंचों पर भारत की आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति अब एक वैश्विक नैरेटिव बन रही है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से भारत ने आतंक के खिलाफ एक नई लकीर खींच दी है—“न्यू नॉर्मल।” भारत अब केवल आंतरिक सुरक्षा को लेकर सतर्क नहीं, बल्कि सीमा पार खतरे की स्थिति में तत्काल प्रहार करने की रणनीति अपना चुका है।

पाकिस्तान को लेकर कूटनीति में अभूतपूर्व स्पष्टता

“पाकिस्तान से बात होगी… तो केवल आतंकवाद पर होगी। पाकिस्तान से बात होगी… तो पीओके पर होगी।” यह ऐलान केवल बयान नहीं है, बल्कि भारत की विदेश नीति में नई धार है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में अपनाने की स्थिति में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अब कूटनीति केवल संवाद नहीं, बल्कि प्रतिरोध और प्रतिशोध का उपकरण है। मोदी सरकार ने एफएटीएफ, संयुक्त राष्ट्र, और जी-20 जैसे मंचों का उपयोग कर पाकिस्तान को बार-बार बेनकाब किया है।

मेक इन इंडिया: भारत का उभरता रक्षा औद्योगिक शक्ति बनना

मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ को केवल एक आर्थिक अभियान तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे रणनीतिक सुरक्षा से जोड़ा है। तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट अब निर्यात की कगार पर है। आकाश मिसाइल सिस्टम, ब्रह्मोस मिसाइल, अर्जुन टैंक—सब स्वदेशी निर्माण की मिसालें हैं। आईएनएस विक्रांत ने भारत को चार राष्ट्रों के क्लब में ला खड़ा किया है जो एयरक्राफ्ट कैरियर स्वयं बना सकते हैं। भारत अब 85 से अधिक देशों को रक्षा सामग्री निर्यात करता है। इस आत्मनिर्भरता ने भारत को वैश्विक सैन्य बाजार में एक ‘नेटरल डिफेंस सप्लायर’ के रूप में स्थापित किया है। ऑपरेशन सिन्दूर ने दुनिया को यह भी सन्देश दिया कि भारत के हथियार आधुनिक, ताकतवर और अभेद्य हैं।

भारत की वैश्विक कूटनीति: निर्णायक नेतृत्व और सहयोग की रणनीति

मोदी सरकार ने भारत की विदेश नीति को बहुआयामी बना दिया है। एक ओर अमेरिका, फ्रांस, इजरायल, ऑस्ट्रेलिया जैसे रणनीतिक साझेदारों के साथ गहरे सुरक्षा संबंध बने, वहीं रूस, ईरान और खाड़ी देशों से संतुलित संवाद को भी बनाए रखा गया। क्वाड – (भारत, जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया) को एक सक्रिय मंच बनाया गया जो इंडो-पैसिफिक में चीन के विरुद्ध संतुलन बनाता है। भारत-फ्रांस रक्षा संबंधों ने स्कॉर्पीन पनडुब्बी, राफेल डील और साइबर सुरक्षा में नई ऊंचाइयों को छुआ है। सऊदी अरब, यूएई और इजराइल के साथ रणनीतिक भागीदारी से पश्चिम एशिया में भारत की उपस्थिति सशक्त हुई है। मोदी सरकार की विदेश नीति की खास बात है उसका स्ट्रैटेजिक बैलेंसिंग एक्ट। अमेरिका के साथ क्वाड और डिफेंस इनीशिएटिव्स को मज़बूत करते हुए भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम जैसे रणनीतिक सौदे भी जारी रखे। वहीं चीन के मामले में भारत ने एलएसी पर ‘स्टैंड-ऑफ’ नीति अपनाते हुए डिप्लोमैटिक वार्ताओं के साथ सैन्य तैनाती में कोई ढील नहीं दी। यह संतुलन ही भारत को आज बहुध्रुवीय विश्व में एक स्वतंत्र ध्रुव की तरह उभार रहा है।

आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक नेतृत्व

भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाया, एफएटीएफ में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डालने में निर्णायक भूमिका निभाई, और ओआईसी जैसे संगठनों में भारत को सम्मानित अतिथि बनवाकर यह जता दिया कि भारत अब एक “ग्लोबल स्टेबलाइज़र” है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि “ये युग आतंकवाद का नहीं है” सिर्फ एक नैतिक उद्घोष नहीं, बल्कि भारत की सैन्य, कूटनीतिक और वैचारिक शक्ति का समन्वय है। प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति केवल प्रतिक्रिया तक सीमित नहीं है, वह वैचारिक स्तर पर ‘राष्ट्र पहले’ और ‘सांस्कृतिक सुरक्षा’ के सिद्धांत पर आधारित है। उन्होंने भारत की सुरक्षा को केवल सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि अस्मिता, परंपरा, सम्मान और गौरव की रक्षा से जोड़ा है।

पीओके: केवल बयान नहीं, रणनीतिक एजेंडा

प्रधानमंत्री द्वारा बार-बार पीओके का उल्लेख केवल भावनात्मक नहीं है, यह एक रणनीतिक संकेत है। भारत अब पीओके को एक भूभाग नहीं, बल्कि अपने आत्म-सम्मान और क्षेत्रीय अखंडता का प्रश्न मानता है। यह बयान चीन को चीन-पाक आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) और गिलगिट-बाल्टिस्तान में उसकी गतिविधियों को लेकर साफ चेतावनी है। मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अब देश न तो आतंकवाद पर चुप रहेगा, न कूटनीति के नाम पर घुटने टेकेगा। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक ऑपरेशन नहीं, बल्कि एक युग की शुरुआत है। यह वह युग है जब भारत की सीमाओं की रक्षा संस्कृति से जुड़ चुकी है, जब राष्ट्रीय सुरक्षा आत्मगौरव से जुड़ी है, और जब भारत की चुप्पी इतिहास हो चुकी है।

की अखंड प्रतिज्ञा

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