अविश्वास प्रस्ताव के सबक

   
भारत के संसदीय इतिहास में विगत शुक्रवार का दिन कई मायने में ऐतिहासिक रहा. विपक्षी दलों द्वारा उस सरकार के खिलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने का दुस्साहस किया गया, जिसे भारत की जनता ने प्रचंड बहुमत से देश की कमान सौंपी है. एनडीए सरकार के खिलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का हश्र क्या होगा इसको लेकर किसी के मन में कोई शंका नहीं रही होगी. वर्तमान में एनडीए को छोड़ भी दें, तो भी भाजपा अपने दम पर सत्ता में बनी रह सकती है अगर इसमें एनडीए को मिला दें तो संख्या बल 311 पर जाकर थमता है, जो बहुमत के जादूई आंकड़े 268 से कहीं ज्यादा है. देश राहुल गाँधी और नरेंद्र मोदी के भाषण की तासीर को समझने में लगा है किन्तु इन सबके बीच पहला सवाल यही खड़ा होता है की विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव की जरूरत क्या थी? किस रणनीति को साधने के लिए कांग्रेस ने टीडीएस के कंधो पर बंदूख रखा? दरअसल,आम चुनाव जैसे–जैसे करीब आ रहा है विश्वास की कसौटी पर रसातल में पहुँच चुकी कांग्रेस झूठ, फ़रेब और अफ़वाह फैलाने के एक भी हथकंडे को छोड़ना नहीं चाहती. अप्रसांगिकता के दौर से गुजर रहे राहुल गाँधी चर्चा में बने रहने के लिए अलग–अलग रणनीति को अपना रहे हैं. यह दीगर बात है की इन सभी प्रयासों के बावजूद उन्हें मात खानी पड़ रही है. अविश्वास प्रस्ताव में भी विपक्ष को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी 11 घंटे की एक अनावश्यक चर्चा के उपरांत हुई वोटिंग में प्रस्ताव के विरोध में 325 वोट पड़े तथा इसके समर्थन में 126 वोट पड़ेने के साथ अविश्वास प्रस्ताव औंधें मुंह गिर गया. इसलिए इसे अनावश्यक चर्चा कहने में कोई दोराय नहीं है, क्योंकि मोदी सरकार के पास पूर्ण बहुमत है, हाल में कोई ऐसी राजनीतिक परिस्थिति भी उत्पन्न नहीं हुई, जिससे मोदी सरकार को विश्वास साबित करने की नौबत आए. ऐसे में यह प्रस्ताव लाना सदन की समय की बर्बादी से ज्यादा कुछ नहीं था. अगर विपक्ष इस प्रस्ताव के मार्फ़त अपने राजनीतिक लाभ को तलास रहा था, तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का मुहावरा विपक्ष पर सटीक बैठता है, क्योंकि मोदी ने अपने करीब डेढ़ घंटे के भाषण में सभी के सवालों का जवाब देते हुए विपक्षी दलों के विश्वास व मंशा पर गंभीर प्रश्न खड़े किए. जो 2019 तक उन्हें परेशान करते रहेंगे. जाहिर है कि यह अविश्वास प्रस्ताव 2019 के चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है, क्योंकि नरेंद्र मोदी की शैली सबसे अलग है. वह इस बात को भलीभांति जानते हैं कि कौन सा मुद्दा कहाँ उठाना है. विपक्ष की अपरिपक्वता ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी को अभी से फ्रंटफूट पर बैटिंग करने का सुनहरा अवसर दिया है. वहीँ दूसरी तरफ़ विपक्ष के महागठबंधन की बुनियाद भी दरकती हुई नज़र आने लगी है. इस अविश्वास प्रस्ताव के आईने में देश की निगाहें टेलीविजन पर टिकी रहीं क्योंकि देश विपक्ष को भी सुनना चाहता था और प्रधानमंत्री को भी. राहुल अपने भाषण में राफेल, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और अर्थव्यवस्था पर अपनी बात रखी. राहुल के तेवर बता रहे थे कि उनके भीतर कौतुहल मचा है, जिसमें वह एक झटके पर खुद को विपक्ष का नेता बता सकें. अपने भाषण के अंत में राहुल गाँधी का अचानक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जाकर गले मिलने का स्वांग हैरान करने वाला था. राहुल अपने वक्तव्य में जिस अति उत्साह का परिचय दे रहे थे, उससे यही साबित हो रहा था की जैसे राहुल आज सभी को निरुत्तर करके खुद को एक परिपक्व राजनेता के रूप में स्थापित करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. राहुल गाँधी के  भाषण को समझने का प्रयास करें तो इसमें कुछ नयापन नहीं था, ठोस तथ्यों का भारी आभाव देखने को मिला, पुरानी घिसीपिटी बातें ज्यादा सुनने को मिलीं. जो राहुल समय–समय उठते रहते हैं ,चाहें संसद में या बाहर उनके बेदम और तर्कहीन आरोपों के चलते ही जब प्रधानमंत्री उसका जवाब देते तो समूचे विपक्ष के पास बोलने को कुछ नहीं बचता. ऊपर से खुद विपक्ष ही सवालों में घिर जाता है. राहुल के भाषण को वक्तव्य को महान बताने वाले कांग्रेसीयों एवं उनके समर्थकों को यह अवश्य बताना चाहिए कि राहुल के इस भाषण में नया क्या था, प्रधानमंत्री से गले मिलने एवं आँखों की हरकतों ने उनकी फजीहत ही की है. इस अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गाँधी का वक्तव्य मुद्दाविहीन और यह साबित करने में असफ़ल रहा कि अविश्वास  प्रस्ताव लाने की जरूरत क्यों पड़ी? बहरहाल, राफेल पर मोदी को घेरने के चक्कर में राहुल गांधी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि फ़्रांस के राष्ट्रपति को बीच में लाकर उन्होंने कितनी बड़ी अपरिपक्वता का परिचय दिया है. राफेल के मद्देनज़र राहुल के बोल झूठ फैलाने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधो में दरार डालने वाला था. इस तरह राष्ट्रीय सुरक्षा एवं कुटनीतिक संबंधो पर झूठे कथानक के आधार पर राजनीतिक आरोप लगाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. जैसे ही, राहुल गाँधी द्वारा कही गई बात फ़्रांस तक पहुँची फ़्रांस ने बिना देर किये राहुल गाँधी के बयान का खंडन करते हुए कहा कि भारत और फ़्रांस के बीच 2008 में सुरक्षा समझौता हुआ था, जिसमें दोनों देश रक्षा से जुडी जानकारी को सार्वजनिक नहीं करने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्य है. गौरतलब है की यह समझौता कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हुआ था. फ़्रांस के खंडन के बाद भी राहुल इस झूठ पर माफ़ी मांगने की बज़ाय अपने बयान पर कायम है, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है की फ़्रांस के वक्तव्य के बाद राहुल गाँधी के झूठ की हवा निकल गई. यह बेहद दुखद है कि दर्जा प्राप्त विपक्षी दल का सबसे बड़ा नेता सदन में इस तरह सफेद झूठ बोलता है. ऐसे ही राहुल के सभी आरोपों का जवाब प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में देते हुए इस प्रस्ताव पर कटाक्ष करते हुए 2024 में राजग सरकार के खिलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही, भीड़ द्वारा की जा रही हिंसा आज चर्चा एवं चिंता का विषय बनी हुई है. भीड़ के द्वारा बढ़ती हिंसा की प्रधानमंत्री ने आलोचना करते हुए राज्यों से यह अपील की कि ऐसे हिंसा में संलिप्त लोगों के खिलाफ़ राज्य सरकारें कड़ी कार्यवाही करें. प्रधानमंत्री ने रोजगार समेत कई योजनाओं से हो रहे लाभ को इंगित किया और कांग्रेस पर करारा हमला किया. अगर हम राहुल गाँधी के बरक्स नरेंद्र मोदी के भाषण को समझे तो प्रधानमंत्री ने एक बार फिर अपने राजनीतिक कौशल के चलते कांग्रेस को असहज कर दिया. बहरहाल, अविश्वास प्रस्ताव ने यह साबित कर दिया की सभी राजनीतिक दल चाहे क्षेत्रीय हों अथवा राष्ट्रीय हों आगामी चुनाव में अपनी राजनीतिक बिसात को बिछाना शुरू कर दिया है जिसकी बानगी शुक्रवार को सदन में देखने को मिली.

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