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देश की राजधानी दिल्ली में विगत दिनों विकासपुरी इलाके में रहने वाले डा.पंकज नारंग को युवकों की भीड़ ने पीट –पीटकर कर मार डाला.इस दिल दहला देने वाली घटना ने सबको झकझोर के रख दिया.डा नारंग का कुसूर बस इतना था कि भारत और बंगलादेश के दरमियाँन हुए रोमांचक मैच में भारत के जीतने के बाद,डा. पंकज नारंग जीत का जश्न अपने बच्चों के साथ रात में क्रिकेट खेल कर मना रहे थे.क्रिकेट खेलते समय गेंद सड़क पर चली गई,गेंद को लाने के लिए डा.नारंग सड़क पर गए,इसी दौरान दो युवक तेज़ रफ्तार से बाइक लेकर गुज़रे.डा.नारंग ने उन्हें आराम से बाइक चलाने की सलाह दी,उन्हें क्या पता था कि ये सलाह उनके लिए मौत लेकर आएगी.बहरहाल,इसी बीच युवकों और डा.नारंग से बहस हो गई,बहस के बाद युवकों ने कुछ ही समय में भीड़ इकट्टा कर डा. नारंग पर हमला बोल दिया और डा.नारंग को बेरहमी से पीट –पीटकर मार डाला.इस हत्या के बाद कई बातें सामने आ रहीं हैं.कुछ लोगो का कहना है कि हत्या बंग्लादेशी मुस्लिमों के किया है तो, वहीँ कुछ लोग ये कह रहें है कि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों ने डा. नारंग की हत्या की है.बहरहाल,पुलिस ने इस मसले पर नौ आरोपियों को गिरफ्तार कर दिया है.डा.पंकज नारंग की हत्या सोशल मीडिया पर ट्रेंड करना लगा.लोगो ने पंकज नारंग के न्याय की बात जोर –शोर से उठाई.इसी बीच इस हत्या को साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास किया गया लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसे अफवाह करार देकर,इससे बचने की अपील की.दिल्ली पुलिस के अनुसार गिरफ्तार लोगों में पांच हिन्दू तथा चार मुस्लिम हैं.डा. पंकज नारंग की हत्या के बाद मौन सेकुलर विरादरी अचानक एक ट्विट के आते ही अपने बिल से बाहर आ गए.इस मसले पर दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी द्वारा जल्दीबाजी में आएं ट्विट को आधार मान कर सेकुलर विरादरी जज बन कर निर्णय करने लगी है कि पंकज नारंग की हत्या एक भीड़ ने किया है न की,किसी विशेष समुदाय ने फिर सवाल उठता है कि अखलाख हत्या के समय भीड़ का धर्म कैसे हो गया ? सनद रहे ये वहीँ लोग हैं जो जेएनयू की घटना के समय दिल्ली पुलिस को संघी पुलिस कहने से नही थकते थे.जो दिल्ली पुलिस कल -तक अविश्वसनीय थी.आज विश्वसनीय कैसे हो गई है ?डीसीपी मोनिका भरद्वाज के ट्विट को लेकर लहालोट हो रहें बुद्धिजीवियों का अचानक दिल्ली पुलिस पर इनका भरोसा हैरान करने वाला है.खैर इस हत्या पर कुछ कहने से सेकुलर बिरादरी अब भी बच रहीं हैं,ये लोग इस पुरे मामले से ध्यान भटका कर ये सिद्ध करने में लगें है कि इस हत्या को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रहीं है.सवाल उठता है कि क्या किसी हत्या पर न्याय की बात करना साम्प्रदायिकता है ? वर्तमान दौर में हम देखें तो स्थिति बड़ी हैरतअंगेज है.मसलन अगर किसी ब्राह्मण की हत्या पर आप न्याय की बात करतें है तो जातिय ठेकेदार इसे ब्राह्मणवाद बता देतें हैं,किसी हिन्दू की हत्या पर न्याय के लिए लड़ते हैं तो सेकुलर लोग इसे साम्प्रदायिकता बता देतें है,वहीँ दूसरी तरफ गौर करें तो यदि कोई दलित की हत्या किसी आपसी रंजिस में भी हो जाती है तो अपने आप को दलित एक्टिविस्ट कहनें वाले हो –हंगामा करतें है.उस वक्त उनकी ये दलील रहती है कि दलितों की हत्या पर न्याय की बात करना दलितों के साथ खड़ा रहने से जातिवाद खत्म होगा,खुदा –न-खास्ता अगर मुस्लिम समाज के किसी ब्यक्ति की हत्या होती है तो छह माह तक छाती पीटने का ढोंग करतें हैं,क्योंकि इससे सेकुलरिज्म मजबूत होगा.कैसा समाज तैयार कर रहें है हम,जिसमें लाशों पर भी जम के राजनीति हो रही है.हत्या पर न्याय की बात भी लोग जाति –धर्म देखकर रहें हैं.निश्चय ही ये स्थिति बड़ी डरावनी है.बहरहाल,किसी ये पहली बार नही है जब धर्मनिरपेक्षता का ढोंग करने वाले वालें लोगो को दोहरा चरित्र हमारे सामने आया है.ऐसे कई दफा हुआ है जब अपने आप को सेकुलर कहने वालें लोग एक्सपोज हुए है.मसलन मालदा की घटना हो या केरल में संघ कार्यकर्ता की निर्मम हत्या इन तमाम हत्याओं में इनकी ख़ामोशी इस बात की पुष्टि करती है कि इनका विरोध चयनित है,ये किसी हत्या का विरोध तभी करेंगे जब मरने वाला या तो अल्पसंख्यक हो या दलित.इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा कि इस पूरे प्रकरण में सेकुलर विरादरी इस बात को ज्यादा तूल दे रहीं है कि हत्यारे किसी एक धर्म विशेष से नहीं है.इस हत्या के बाद इन सेकुलर कबीले लोगों को देश में कहीं असहिष्णुता नही दिखाई दे रहीं है.अब असहिष्णुता उनके लिए एक महज भीड़ बन गई है.इन लोगो को असहिष्णुता तभी दिखाई देगी जब कोई पंकज नारंग होने की बजाय अखलाख हो.अखलाख के समय हिन्दू कट्टरपंथी भीड़ आज ‘रोड रेज़’ में तब्दील हो गई है.एक बात तो स्पष्ट है कि अखलाख की हत्या भी भीड़ ने किया था और डा.नारंग की हत्या भी भीड़ ने किया है,फिर उनदिनों हिन्दू कट्टरपंथ और असहिष्णुता का राग अलापने वाले क्या देश से मांफी मागेंगे ?पुरस्कार वापसी करने वाले सभी साहित्यकार,फिल्मकार तथा इतिहासकार जो उनदिनों असहिष्णुता का राग अलाप रहे थे.क्या इस हत्या के बाद भी पुरस्कार वापसी करेंगे ?इस प्रकरण ने छद्म सेकुलरिज्म की पोल खोलकर रख दिया है.ये बात तो स्पष्ट हो चला है कि इनका सेकुलरिज्म हिन्दू विरोध तक सिमट कर रहा रह गया है.बहरहाल, इस हत्या को लेकर तमाम पहलू सामनें आएं है.इस मामले के सभी पहलुओं की बड़े स्तर पर जाँच होनी चाहिए ताकि इस हत्या का सच सामने आ सकें.इसके साथ ही जब-तक जांच की रिपोर्ट नहीं आ जाती तबतक किसी भी आरोप को खारिज़ करना उचित नही होगा.
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