प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पैरिस में हुई एक अनौपचारिक मुलाकात को लेकर अभी बहस चल ही रही थी कि इसी बीच रविवार को भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में मुलाकात किया.लगभग चार घंटें तक चली इस बैठक में आतंकवाद और जम्मू –कश्मीर सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई.भारत के एनएसए अजीत डोभाल और पाकिस्तान के एनएसए नसीर खान जंजुआ की मुलाकात के बाद एक संक्षिप्त साझा बयान जारी किया गया.जिसके मुताबिक चर्चा सौहार्दपूर्ण और रचनात्मक माहौल में हुई साथ ही रचनात्मक सम्पर्क को आगे बढ़ाने पर भी सहमती बनी.इस बैठक को संयुक्त राष्ट्र समेत कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने सराहा है.लेकिन भारत में इस वार्ता की कड़ी आलोचना हो रही है. .कांग्रेस ने इस बैठक को देश के साथ धोखा करार दिया है तो वही एनडीए में शमिल शिवसेना और बीजेपी के वरिष्ठ नेता यसवंत सिन्हा ने भी इस मुलाकात पर सवाल उठाएं है.बहरहाल,आखिर पाकिस्तान से भारत सरकार को बातचीत की आवश्यकता क्यों पड़ी.ये समझ से परे है.अगर पाकिस्तान कुछ आतंक विरोधी कदम उठाये होतें या फिर सीजफायर के उल्लंघन पर रोक लगाया होता तब वार्ता बहाल करना समझ में आता.परन्तु, भारत सरकार बातचीत को लेकर इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई यह एक यक्ष प्रश्न की तरह है.जब पिछली बार अगस्त में बातचीत बंद हुआ तब से लेकर तभी तक पाकिस्तान ने अपनी नीति में कोई बदलाव नही है.आज भी पाकिस्तान झूठ बोलने से बाज़ नहीं आता.हमें आज भी संयुक्त राष्ट्र की सभा में नवाज शरीफ द्वारा दिया गया भाषण याद है जिसमें नवाज़ ने संयुक्त राष्ट्र को भ्रमित करतें हुए एनएसए स्तर की वार्ता विफल होनें का ठीकरा भारत से सर फोड़ा था.लेकिन हकीकत पूरी दुनिया को पता है, कि पाकिस्तान,आधिकारिक वार्ता से पहलें हुर्रियत नेताओं से बातचीत करना चाहता था.फलस्वरूप भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करते हुए वार्ता को रदद् कर दिया था.भारत उस वार्ता को रदद् करते हुए स्पष्ट संकेत दिया था कि,भारत अब किसी भी कीमत पर आतंक को बर्दास्त नहीं करेगा.नवाज शरीफ के इस सफेद झूठ के बाद भी हमने सीख नही लिया.जो देश वैश्विक मंच पर भारत के ऊपर झूठे आरोप लगाता हो उस देश के आगे हम बार –बार दोस्ती का हाथ बढ़ाएं निश्चित ही ये हमारी निम्न स्तर की कूटनीति का परिचय हैं.भारत की नीति साफ रही है आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं हो सकती लेकिन, आज सरकार इस नीति से समझौता कर रही है.जो आने वालें दिनों में घातक सिद्ध हो सकती है.गौरतलब है कि पाकिस्तान ऐसा देश है, जिसकी पहचान आतंक को बढ़ावा देने तथा आतंकियों को अपना हीरो मानने की रही है.ऐसे देश से हम उम्मीद लगायें की ये आतंकवाद पर चर्चा करेगा तथा आतंक के खात्मे के लिए हर संभव मदद करेगा तो ये बेमानी होगी.पाकिस्तान हमेसा से आतंकवाद का हिमायती रहा है.जिसके हजारों साक्ष्य दुनिया के सामने है.दरअसल जब भी भारत में आतंकवादी हमला होता उसमे पाक के नापाक मंसुबें दुनिया देखती है. लेकिन उस पीड़ा को सहते हम है.मोदी द्वारा दोस्ती का हाथ बढ़ाने और नवाज शरीफ का बीना शर्त बातचीत के बयान की दुनिया में भलें ही तारीफ हो रही है परन्तु हकीकत यही है कि पाक कायराना हरकत करने से बाज़ कभी नहीं आता .एक तरफ भारत-पाकिस्तान एनएसए की मुलाकात में सौहार्द बनाने की बात करने वाले पाकिस्तान की पोल चंद घंटो बाद ही खुल गई.जब कश्मीर में सीआरपीएफ के काफिले पर पाक परस्त आतंकियों ने हमला किया ,जिसमे हमारे 6 जवान घायल हो गये.ऐसा में हम कैसे मान लें कि पाकिस्तान अपने पोषित आतंकियों पर रोक लगाएगा.आतंक को लेकर भारत का रुख बिल्कुल स्पष्ट है.भारतीय प्रधानमंत्री आतंकवाद का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र से लगाए हर मंच से इसका विरोध करतें रहें है तथा आतंकवाद के खात्मे के लिए समूचे विश्व को एक साथ खड़े होने की बात करते रहें है.ऐसे में मोदी को ये सोचना होगा कि पाकिस्तान आतंकवाद जैसे मुद्दे पर भारत का साथ देगा? एनएसए स्तर की बातचीत से कुछ दिन पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने कहा था कि पाकिस्तान बीना शर्त के भारत से वार्ता करने को तैयार है.ये बात किसी से छिपी नही है कि पाक के कथनी और करनी में जमींन-आसमान का फर्क होता है .महज इस बयान को आधार मान कर अगर हम बातचीत शुरू किये है तो जगह बैंकाक क्यों ?प्रधानमंत्री दोनों देशों के बीच जमीं बर्फ पिघलाने के लिए इतनी उत्सुक थे तो, ये वार्ता नई दिल्ली या इस्लामाबाद में क्यों नही किया गया ? इसका मतलब सीधा है कि अगर ये बैठक दिल्ली में होती तो पाकिस्तान से अलगाववादी नेता रूठ जाते.पाकिस्तान ने चालाकी दिखाते हुए बैंकाक को बैठक के लिए उपयुक्त स्थान समझा.ये बात जगजाहिर है कि भारत सबसे ज्यादा पाकिस्तान में पोषित आतंकी संगठनों के निशाने पर रहा है.इसके लिए नवाज़ शरीफ ने अभी तक कोई बड़ा कदम नही उठाया है.ये सब मामलें सरकार के संज्ञान में है फिर भी अगर भारत सरकार पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाएगी तो इसके कोई दोराय नही कि पाकिस्तान के हौसलें में और मजबूती आएगी और पाक इन हरकतों पर लगाम नही लगाएगा.पाक को कड़े संदेश देने की जरूरत है लेकिन हम और नरम होतें जा रहें है.पाकिस्तान से हमने कई दफा दोस्ती के हाथ बढ़ा चुके है अगर नवाज शरीफ को संबंध को सुधारने की थोड़ी भी इच्छा रहती तो मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के बाद सीजफायर और आतंकी वारदातों पर लगाम लगायें होते,लेकिन बार –बार भारत सरकार की कोशिश यही रही है कि पाक से संबंध सुधर जाएँ लेकिन पाकिस्तान ने कभी इस पर सकारात्मक सोच नही रखा.बहरहाल,इस मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच जमी बर्फ कितना पिघला है.ये तो आने वाला वक्त बतायेगा. परन्तु पाकिस्तान से जो संकेत मिल रहें है उससे पता चलता है कि न तो उसकी नियत बदली है और न नीति.दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मुकालात के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज दो दिवसीय यात्रा पर पाकिस्तान पहुंची है.इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान पर हो रहें बहुपक्षीय सम्मेलन शिरकत करना है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि सुषमा स्वराज, नवाज शरीफ से भी मिल सकती है.एनएसए की मुलाकात के बाद विदेश मंत्री की यात्रा दोनों देशों के संबंधो तथा बातचीत को नई उचांई मिल सकती है.हमारी भावना शुरू से यही रही है कि दोनों देश आपस में मिलकर रहें लेकिन पाकिस्तान की नीति और नियत दोनों में भारत के प्रति खोट रहा है.फिर भी हम रूठने –मानने की नीति पर चलते आ रहें है. अब समय आ गया है सरकार को एक स्थाई नीति के तहत पाकिस्तान से वार्ता करनी चाहिए.जिससे पाकिस्तान को कड़ा संदेश मिल सकें..
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